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कविता

उन्हें पुकारो

गुलाब सिंह


जीवित जड़ में
पानी डालो
फूल खिलेंगे

धरती की झुर्रियाँ
सूखती छोटी नदियाँ
रटती रेत लहर की
शीतल शब्दावलियाँ
साधो समय
तो बंजर में
अंकुर निकलेंगे।

जो उजाड़ बीराने में
निर्भय बसते हैं
जंगल पर्वत काट-कूट
राहे गढ़ते हैं
उन्हें पुकारो
ऊँचाई की
ओर चलेंगे।

हकतरफी वाले
सब संग्रह छीजेंगे
ठोकर से ही
पत्थर सभी पसीजेंगे
बहसों से ही
विषय विमर्शों
के बदलेंगे।
 


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